कृष्ण
आके ब्रज में कृष्ण जी , वंशी बजा कर चल दिए
अपने भक्तों की बिगड़ी बना कर चल दिए
आके ब्रज में कृष्ण जी , वंशी बजा कर चल दिए
सारा मथुरा नगर जब कंस से पीड़ित हो गया,
जन्म प्रभु ने लिया उसको मिटा कर चल दिए
अपने भक्तों की बिगड़ी बना कर चल दिए
आके ब्रज में कृष्ण जी , वंशी बजा कर चल दिए
यमुना मैया जब विष से व्याकुल हो गयीं ,
गेंद का कर के बहाना, काली मर्दन किया और चल दिए
अपने भक्तों की बिगड़ी बना कर चल दिए
आके ब्रज में कृष्ण जी , वंशी बजा कर चल दिए
अति वर्षा से जब ब्रज में हाहाकार मचा,
मुस्कराए प्रभु गोवर्धन उठाकर हंस दिए
अपने भक्तों की बिगड़ी बना कर चल दिए
आके ब्रज में कृष्ण जी , वंशी बजा कर चल दिए
नारि जब गौतम ऋषि की शापवश पत्थर बनी,
चरण-राज उसको छुआ स्त्री बना कर चल दिए
अपने भक्तों की बिगड़ी बना कर चल दिए
आके ब्रज में कृष्ण जी , वंशी बजा कर चल दिए
भारी सभा में द्रोपदी का, चीरहरण जब हो रहा,
आये प्रभु जी लाज बचके, चिर बढ़ा के चल दिए
अपने भक्तों की बिगड़ी बना कर चल दिए
आके ब्रज में कृष्ण जी , वंशी बजा कर चल दिए
मित्र सुदामा जब घोर विपदा से घिरे ,
खाए तंदुल धनवान बना ,मित्रता निभाकर चल दिए
अपने भक्तों की बिगड़ी बना कर चल दिए
आके ब्रज में कृष्ण जी , वंशी बजा कर चल दिए
Friday, July 30, 2010
Thursday, July 29, 2010
मेहँदी गीत --- अर्चना प्रकाश
सावन ऋतु आए, मैया मेहँदी लगाये ,
रचि रचि मेहँदी जग को रिझाये
मैया की मेहँदी कबहूँ न छूटे,
मेहँदी के रंग त्रिदेव निखारे
सावन ऋतु आए मैया मेहँदी रचाए
मेहँदी की पत्ती शिव शंकर तोड़े,
ब्रहम्मा जी मेहँदी चन्दन सी पीसें ,
विष्णु जी मैया को मेहँदी लगायें
सावन ऋतु आए मैया मेंहदी लगाये
दाहिनी हथेली शिव शम्भू ने पकड़ी,
चुनी चुनी मेहँदी त्रिशूल बनायें
सावन ऋतु आए मैया मेहँदी लगाये
बांयी हथेली ब्रहम्मा ने पकड़ी ,
रूचि रूचि मेहँदी कमल बनायें
सावन ऋतु आए मैया मेहँदी लगाये।
दोउ चरण विष्णु जी ने पकडे,
रूचि रूचि पावों में चक्र बनाये।
सावन ऋतु आए मैया मेहँदी रचाए।
रचि रचि मेहँदी जग को रिझाये
मैया की मेहँदी कबहूँ न छूटे,
मेहँदी के रंग त्रिदेव निखारे
सावन ऋतु आए मैया मेहँदी रचाए
मेहँदी की पत्ती शिव शंकर तोड़े,
ब्रहम्मा जी मेहँदी चन्दन सी पीसें ,
विष्णु जी मैया को मेहँदी लगायें
सावन ऋतु आए मैया मेंहदी लगाये
दाहिनी हथेली शिव शम्भू ने पकड़ी,
चुनी चुनी मेहँदी त्रिशूल बनायें
सावन ऋतु आए मैया मेहँदी लगाये
बांयी हथेली ब्रहम्मा ने पकड़ी ,
रूचि रूचि मेहँदी कमल बनायें
सावन ऋतु आए मैया मेहँदी लगाये।
दोउ चरण विष्णु जी ने पकडे,
रूचि रूचि पावों में चक्र बनाये।
सावन ऋतु आए मैया मेहँदी रचाए।
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